रावण अन्याय,अनीति, दुराचार और अहंकार का प्रतिक-जिनेन्द्रमुनि मसा*
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*रावण अन्याय,अनीति, दुराचार और अहंकार का प्रतीक-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 11 अक्टूबर
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ महावीर जैन गोशाला उमरणा में जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि राम न्याय नीति और सदाचार का प्रतीक है।जबकि रावण अन्याय अनीति दुराचार का प्रतीक है।यदपि बल बुद्धि वैभव में रावण राम से कम नही था।रावण का वैभव कितना विशाल था।सोने की ईंटो के जिसके भवन बने हुए थे।दस बुदिमानो की बुद्धि उसके पास थी।ऐसा बलवान रावण अनीति और अहंकार के कारण भीतर से एकदम खोखला हो गया।आदमी ताव में आकर भला बुरा भूल जाता है।आप मे भी ताव विधमान है।ताव के कारण आपने अनेक शत्रु पैदा कर दिये है।मुनि ने कहा कि अहंकार माया लोभ अनीति सभी ताव के ही पर्यायवाची शब्द है।ताव में ही सीतामाता का अपहरण किया।इतिहास हमारे समक्ष है,उसका नतीजा कितना बुरा मिला।रावण जैसा विद्वान बुद्धिमान और बलवान राम के एक बाण से धराशाही हो गया।इसका तात्पर्य यह है कि व्यक्ति चाहे जितना बलवान क्यो न हो,चरित्र और अनीति होने पर सामान्य व्यक्ति के सामने भी हार खा जाता है।संत ने कहा कौरवो और पांडवों का घमासान भी अनीति ओर अन्याय का ही था।पांडवो के अज्ञातवास भोगना पड़ा, जिसका पहलू न्याय नीति और सदाचार के प्रतीक के रूप में आज भी देदीप्यमान हो रहा है।मुनि ने कहा राम एक चरित्रवान नीतिवान सदाचारी मर्यादा पालक शक्ति का प्रतीक है।संसार मे सदा ही यह खेल चलता रहा है।जब जब भी अनीति अन्याय शक्ति के रूप में उभरकर समाज को उत्पीड़ित और प्रताड़ित करते है न्याय और सदाचार की शक्ति उसका नाश करने अन्याय पर न्याय की विजय ध्वजा फहराती है।राम रावण का युद्ध अधर्म धर्म का युद्ध बन जाता है।दुराचार और सदाचार का युद्घ बन जाता है।मजबूरी मेंछोड़ा गया त्याग त्याग नही कहलाता है।राम का त्याग जनजन के लिए आदर्श बन गया।जिसने पिता के समक्ष दिये वचन को देखने के लिए मुस्कराते हुए राज्य का परित्याग कर दिया।दुर्गा ने सिंह पर बैठकर अपने त्रिशूल से सबसे बड़े तीन दैत्यों के संहार किया।तो यह दैत्य विजय का दिन आज का ही याने रावण दहन का दिन था।एसलिये यह दिवस विजय दशमी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।जिस प्रकार प्रजापति ने देवताओं की शक्तियों को केंद्रित करके दुर्गा महाशक्ति का निर्माण किया।उसी प्रकार आप अपने दिव्य गुणों से साहस,संकल्प सत्य संयम सदाचार और संतोष आदि गुणों को प्रकट करे।ताकि मोह मूढ़ता मद आलस्य रूपी राक्षसों का नाश करके आप संसार मे सर्वश्रेष्ठ आत्म विजय के भागी बन सकते है।प्रवीणमुनि ने कहा विजय दशमी को दशहरा कहते है।दस को हरने वाला दस का नाश करने वाला सामान्य भाषा मे दशकंधर नाम रावण का है।रितेश मुनि ने कहा मौन व्यक्तित्व को अधिक प्रभावशाली और अधिक लोकप्रिय बनाता है।जो जितना कम बोलता है,उसकी वाणी उतनी ही प्रभावशाली होती हैऔर लोग उसके विचारों पर चलने को उधत हो जाते है। प्रभातमुनि ने कहा निर्वाण या निवृति का यही अभिप्राय है कि मन मे सांसारिकता का आकर्षण कम करे।जो कुछ सामग्री आपको उपलब्ध हुई उसमे आसक्ति का बंधन मत डालो।
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