संवेदनाहीन मानव पत्थर दिल निर्दयी और निष्ठूर- जिनेंद्रमुनि मसा*
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*संवेदनाहीन मानव पत्थर दिल निर्दयी और निष्ठूर- जिनेंद्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुंदा 28 सितंबर
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ उमरना के स्थानक भवन में जिनेंद्रमुनि मसा ने कहा कि आज व्यक्ति मानसिक स्तर पर स्वस्थ नहीं है।अनेक ग्रंथियां उसके मस्तिष्क में बनी हुई है।उनका विष व्यक्ति के व्यवहार में फैलता जा रहा है। फल स्वरूप व्यक्ति स्वस्थ रचनात्मकता से दूर होता जा रहा है। उसके व्यवहार से क्रूर स्वार्थ और कठोरता फैल रही है।जो व्यक्ति साधन संपन्न है।वह यदि पीड़ित व्यक्ति की पीड़ा को समझकर भी अनदेखा करे या किसी की पीड़ा को समझने का प्रयास भी नहीं करे तो भी पशु समान है।उसे अपने आपका भी ख्याल नहीं रहता है तो वह दूसरों की परवाह करेगा?ऐसा मानव इंसान न रहकर शैतान के रूप में परिवर्तित हो जाता है।पर उसे धार्मिक कहलाने का अधिकार नहीं है। आज एक दूसरे को सहयोग करने के बजाय खींचातानी करते है।जिसे देश व समाज का विकास नही होता है, विकास में अवरोध आता है।मुनि ने कहा पीड़ित को जो पीड़ा हो रही है।उसी पीड़ा को हम अपने जीवन में अनुभव करे। मानव हृदय को कमल कहा है।हाथ और पांवों को भी भी कमल की ही उपमा दी है,किंतु आज मानव के हाथ पांव कमल नहीं रहकर पत्थर बन गए है। जहा अन्य किसी के लिए कोई संवेदना नहीं। आज के परिपेक्ष्य में लोगो ने जीवन जीने की पद्धति में ही ऐसे जहरीले बीज बो दिए जाते है,जिससे लोग कही के नही रहते है।मुनि ने कहा माता ,पिता गुरु ,धर्म सभी रिश्ते टूटते जा रहे है। सब स्वार्थ के रिश्ते बन गए है। जबकि भोगवाद की उस अति में पहुंच गए है।जैन संत ने कहा स्वार्थ मोह के वशीभूत होकर कोई संवेदनशील होता है तो उसे वास्तविक संवेदना नहीं कहा जा सकता है।जिसके पीछे अपेक्षाओं के भाव निहित है,वह सौदेबाजी की तरह व्यापार ही माना जायेगा।अपने समाज में फैली कुरीतियों को खत्म करना होगा।तभी समाज को सही दिशा मिल सकती है।मुनि ने कहा इंसान की बात तो छोड़िए,पशु जगत में भी संवेदना विद्यमान है।जाति धर्म भाषा और प्रांतवाद के संकीर्ण नजरिए ने मानव को पहचान ने से इंकार कर दिया है।तो क्या यह मानवता पर कलंक नहीं है?मानव का पतन ही नहीं किंतु विश्व का पतन है।यह कैसे रुके यही विचारणीय प्रश्न है। प्रवीण मुनि ने कहा धर्म तारण हार है। सम्पूर्ण संसार व्याधि और उपाधि से सत्रस्त है। यहां कदम कदम पर दुखो का झाल बिछा है। चारो तरफ चिंताओं की भयंकर ज्वालाये धधक रही है।मनुष्य शांति की तलाश में इधर उधर भटक रहा है।लेकिन शांति का दर्शन दुर्लभ हो गया है। रितेश मुनि ने कहा आपको बचाने के लिए धर्म गुरु तैयार है।आपको तो बस कूदना है।कितने लोग कूदने की हिमत कर पाते है।मुनि ने कहा आप भी वैसे ही संसार की आग में घिरे हुए है। प्रभातमुनि ने कहा जहा अहिंसा सत्य त्याग और संयम की आत्मा बोल रही होती है,वही वाणी सच्ची वाणी कहलाने की अधिकारिणी है।
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