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स्वार्थ का कारण हमारा अज्ञान है-जिनेन्द्रमुनि मसा*

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*स्वार्थ का कारण हमारा अज्ञान है-जिनेन्द्रमुनि मसा*
गोगुन्दा 24 जुलाई
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ उमरणा श्री महावीर गोशाला स्थित स्थानक भवन में जैन संत जिनेन्द्रमुनि मसा ने प्रवचन माला में कहा कि स्वार्थ का कारण हमारा अज्ञान है।भूख का स्वार्थ मिटने पर मिठाई भी बुरी लगने लगती है।जबकि मिठाई तो वही है।किसी भी वस्तु ,व्यक्ति या परिस्थितियों से जब तक मानव का स्वार्थ पूरा होता है तब तक ही उसमें ममत्व होता है।स्वार्थ की कमी होने पर वही ममत्व द्वेष का रूप धारण कर लेता है ।अतः स्वार्थ से बचते रहना चाहिए। मूल कारण तो व्यक्ति का अज्ञान ही है।जिससे वह प्रत्येक कार्य मे स्वार्थ की भावना रखता है।प्रत्येक व्यक्ति अपने किसी भी छोटे बडे दुःख का कारण किसी वस्तु के अभाव प्रतिकूल व्यक्ति व वस्तु के संयोग अथवा अनुकूल व्यक्ति के वियोग आदि किसी न किसी परिस्थिति के कारण ही अपने को दुःखी मानता है।फलस्वरूप वह परिस्थितियों को ही सुधारने का प्रयत्न करता रहता है।मुनि ने कहा कि परिस्थितियों को बिगड़ने नही देना या बिगड़ी हुई परिस्थिति को सुधार लेना अथवा बना लेना, यह उसके हाथ की बात नही ।सबको अनुकूल रख लेना एवं किसी भी वियोग नही होने देना उसके वश की बात नही है।जैन मुनि ने कहा मनचाहा धन मनचाही संस्कारित संतान या मन सम्बंध स्थापित कर लेना क्या मनुष्य के वश की बात है?रीतेश मुनि ने कहा हदय परक ज्ञान या अज्ञान मजबूत और टिकाऊ होता है।जिन जिन बातों की सच्चाई हदय ने स्वीकार कर ली।यह ज्ञान हमारा हदय परक ज्ञान है।इसी प्रकार जो गलत या जूठी बात भी अज्ञान द्वारा हदय परक बन गई जैसे कान से सुनते है या मुह से कहते भी है कि संतोष परम सुखम पैसा तो
पाप का मूल है,हाथ का मैल है या झगड़े की जड़ है पर हदय में तो जमा है कि धनमेव परम सुखम।प्रवीण मुनि ने कहा कि जो वस्तु या आदत खराब है और छोड़ने योग्य है परंतु जब तक उससे होने वाली हानियों का ज्ञान हदय एवं आत्म परक नही होता तब तक उस वस्तु या आदत को छोड़ने की भावना जैसे द्रढता पूर्वक बननी चाहिए नही बनती है।प्रभातमुनि मसा ने मंगलाचरण कर उपस्थित श्रावकों को नियमित साधना करने की अपील की गई।

 

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