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वर्तमान में जो शिक्षा पद्धति है,वह समीचीन नही है*

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*वर्तमान में जो शिक्षा पद्धति है,वह समीचीन नही है*

आज की शिक्षा प्रणाली सम्यक नही है।कहा हमारा ज्योतिर्मय अतीत और कहा अंधकारमय वर्तमान?यदि यही स्थिति रही तो भविष्य को धूलमिल और अंधकारमय ही समझना चाहिए।जब हम अपने अतीत की और दृष्टिपात करते है तो मन गर्व से अभिभूत हो उठता है।आज का छात्र और टीचर की कार्यप्रणाली पर ही प्रश्नचिन्ह है।वह अपनी क्षमताओं का दुरुपयोग कर रहा है।संस्कारहीनता के कारण आज का राष्ट्र और जो अंतर ह्दय है,वह अत्यंय आंदोलित एवं उद्वेलित है।जब जब यह छात्रों के द्वारा अमुक स्थान पर हड़ताल की गई एवं उनके द्वारा यह नुकसान कर दिया तो मुझे गहरी पीड़ा की अनुभूति होती है।छात्राओं पर राष्ट्र और समाज को कई अपेक्षाएं है।लेकिन टीचर द्वारा स्कूल के नियमो को ताक पर रखकर विद्यालय पर लांछन लगाया जाता है तो उससे भी बहुत अधिक पीड़ा का अनुभव होता है।

राजस्थान के चितौड़गढ़ के गंगरार में संस्था प्रधान और महिला टीचर का एक अश्लील वीडियो सामने आया है।इस वीडियो में स्कूल में अश्लील हरकत करते नजर आ रहे है।शिक्षा विभाग ने महिला टीचर और संस्था प्रधान दोनों को निलंबित कर दिया है।जांच के लिए राजपत्रित कमिटी भी बनाई है।यह एक स्कूल की बात नही है।इस पर विद्यालय के छात्र छात्राओं पर गहरी अमिट छाप छूट जाती है।अश्लीलता देखकर छात्र छात्राओं द्वारा अश्लील हरकत का अनुसरण ही करेंगे।यह आज के शिक्षक और छात्र के बीच की भेदरेखा है ,वह दूर करने की आवश्यकता है।आए दिन स्कूल के स्टाफ द्वारा छात्र छात्राओं को झाड़ू पोछा और साफ सफाई का वीडियो या समाचार अखबारों में प्रकाशित होते है।यह उन अध्यापकों के लिए शर्म की बात है जोकि इस तरह की हरकत कर विद्यालय को बदनाम किया जाता है।देश मे कई राज्यो में इस तरह की अश्लील वीडियो सार्वजनिक हुई भी है।इस तरह की हरकत विद्यालय पर कलंक समान है।आज का दौर चल रहा है,वह अत्यंत भयावह है।विकृतियों की पुष्टि से जीवन मूल्यों का तेजी से जो क्षरण हो रहा है उसकी रोकथाम के लिए हम सब को आगे आने की जरूरत है।शिक्षा वही शिक्षा है जो सुधार की समग्र दिशाओं को प्रशस्त करती है।हमे वही शिक्षा आत्मसात करनी है जिसे स्व पर हित सम्यक प्रकार से सम्पादित हो।अभिभावकों को भी अपना दायित्व निभाना है।

अपने दायित्वों को निष्ठा के साथ निर्वहन करना है।आपकी सजगता और असजगता से बालक प्रेरित और प्रभावित होता है। यह मान कर चलना है कि स्कूल कॉलेज में आज का दौर भयावह है।आज स्कूल की ऑफिस में इस तरह की हरकत टीचर करते हुए पाये जाते है तो अन्य स्कूल भी अछूते नही हो सकते है।शिक्षक की एक हरकत का अनुसरण बालक करता है तो उसके जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।टीचर को अपने जीवन को आदर्श बनाना चाहिए जिससे बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलने का प्रारंभ हो।शिक्षकों का दायित्व भी कम महत्वपूर्ण नही है।शिक्षक का पद बहुत गरिमामय पद है।शिक्षक बालक को शिक्षा देते समय बहुत सावधानी रखें।शिक्षा नाम पर बालक को कभी भी कुसंस्कार देने की भूल न करे।यह भूल ऐसी भूल है,जो चिरकाल तक कदम कदम पर शूल का कार्य करके चुभन देती रहती है।शिक्षा के मूल उद्देश्य को भलीभांति समझने की कोशिश करनी चाहिए।स्कूल में टीचर के संस्कार और क्रियान्वित का प्रभाव बालक पर सीधा पड़ता है।इसलिए टीचर स्कूल में ऐसी कोई अश्लीलता का प्रदर्शन नही करे, जिसका प्रभाव कोमल ह्दय पर पड़ते रहने से बच्चों में कुसंस्कार का बीजारोपण होता रहे।शिक्षा बहुत बडी चीज है।वह जीवन मे एक नई चमक ला देती है।शिक्षक का सही लक्ष्य मानव बनाने का है।जिस शिक्षा से मानव में मानवता जागृत न हो अथवा पशुता के संस्कार समाप्त न हो,उस शिक्षा का कोई मतलब नहीं है।वर्तमान में जो शिक्षा पद्धति है और शिक्षकों के आचरण है,वह समीचीन नही है।आज इस बात की आवश्यकता है कि शिक्षा का,ज्ञान का स्वरूप सम्यक हो एवं वातावरण में व्याप्त अराजकता के उन्मूलन के लिए जागरूकता पूर्वक प्रयास हो।ज्ञान का सूरज उगाने की आवश्यकता है।व्यभिचार की प्रवृत्ति बालक का भविष्य ही खत्म नही करती है।शिक्षकों के लिए बहुत बड़ी क्षति है।उसका अंदाजा अश्लीलता के बाद उनको हो जाता है।हम अतीत की और दृष्टिपात करते है तो मन गर्व से अभिभूत हो उठता था।लेकिन आज शिक्षक और छात्र दोनों भ्रमित होते दिखाई दे रहे है।शिक्षक गुरु ही नही है।बच्चों के भविष्य निर्माण में अहम भूमिका अगर किसी की रहती है तो वह शिक्षक ही है।लेकिन आज छात्र डिग्री लेते है और शिक्षकों की अभद्रता समाज को गलत संदेश दे रही है।हाथ कंगन को आरसी की जरूरत नही हुआ करती है।

                        *कांतिलाल मांडोत*

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