अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता,अस बर दीन्ह जानकी माता
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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता,अस बर दीन्ह जानकी माता
श्री हनुमानजी रुद्र के अवतार माने गए है।आशुतोष याने भगवान शिव का अवतार होने से उनके सामन ही हनुमानजी की थोड़ी भक्ति से जल्दी ही कलह,दुःख व पीड़ा दूर कर मनोवांछित फल देने वाले माने जाते है।हनुमान का जीवन एक विशिष्ट जीवन है।प्रभु भक्ति सेवा और समर्पण का भाव यदि जीवन में प्रकट करना हो तो हनुमान का अनुकरण करना चाहिए।हनुमान से जुड़े अनेक प्रसंग है।जब जब भी हम उन प्रसंगों को हम पढ़ते है,सुनते है तो मन गदगद हो जाता है।हनुमान का चरित्र गुण, शील भक्ति बुद्धि और कर्तव्य जैसे आदर्शों से भरा है।इन गुणों के कारण तो भक्तों के ह्दय में उनके प्रति गहरी आस्था जुड़ी है।श्री हनुमान जी को सबसे अधिक लोकप्रिय देवता बनाती है।हनुमानजी ने अनेक रूपो में साधना की थी।अद्भुत त्याग और अद्भुत समर्पण भाव उनके ह्दय में था।मर्यादापुरुषोत्तम राम उच्च कोटि के महापुरुष थे।उनके व्यक्तित्व और कर्तव्य की विशिष्टता और गरिमा असन्दिग्ध है।पर इनमें भी सुई भर संदेह नही है कि हनुमान के बिना राम का जीवन भी सुना है।
लोक परम्पराओ में बाल हनुमान,वीर हनुमान दास हनुमान योगी हनुमान आदि प्रसिद्ध है।किन्तु शास्त्रों में श्री हनुमान के एक चमत्कारिक रूप और चरित्र के बारे में लिखा गया है,वह है पंचमुखी हनुमान।
हनुमान,राम के दूत के रूप में लंका में पहुंचे।राक्षको ने हनुमानजी को परास्त करने के सैकड़ो प्रयत्न किए,पर वे सफल नही हुए।अंततः इंदरसिंह के नागपाश में वे बंध गए और जब उन्हें रावण की सभा मे लाया गया तो रावण व्यंग किये बिना नही रहा। रावण के कहा-हनुमान तुम यहाँ दूत बनकर आए तो,अन्यथा अभी तुमारा वध करवा दिया जाता।तुम राम के भक्त हो,भूल जाओ अब वनवासी राम को।यहां तुमारा सहयोग करने के लिए राम आने से रहे।अब तो तुम्हे हाथ मुंह काला करके लंका से अपमान करके लंका से अपमान पूर्वक निकाला जाएगा।अब भी तुम सोच लो,राम को छोड़ दो और हमारी आज्ञाओ को स्वीकार कर लो।हनुमान ने जब यह सुना तो उनका आत्मतेज जागृत हो उठा।वे सोचने लगे,दरअसल यह अपमान हनुमान का नही है,अपितु मेरे स्वामी राम का है।मैं अपने आराध्य देव ईश राम का अपमान एक पल के लिए भी सहन नही कर सकता।बस अंतर आत्मा की शक्ति का बोध होने भर की देर थी।उन्होंने हुंकृति की और एक झटके मात्र में नागपाश को तोड़कर उससे मुक्त बन गए।
हनुमानजी जब नागपाश में बंधे थे,तब भी नागपाश वही था।और नागपाश से मुक्त बने,तब भी नागपाश वही था।हनुमान नागपाश में तब बंधे रहे,जब तक वे उस नागपाश को अपने से अधिक शक्तिशाली समझते रहे।पर जब उन्हें आत्म शक्ति का अहसास हुआ तो उन्हें लगा कि मेरे से अधिक शक्ति संपन्न नागपाश नही है।जब तक आत्मा कर्मसता को बलवान समझता है,वह अपने को दीनहीन समझकर वैभाविक दासता को स्वीकार करके दुख उठाता है।संसार मे जितना भी दुःख और समस्याएं है,उनका संबंध आत्म विस्मृति से है।हम कभी भी अपने आपको दीनहीन नही समझे।
पांच मुख वाले हनुमानजी की भक्ति न केवल लौकिक मान्यताओं में बल्कि धार्मिक और तंत्रशास्त्रो में भी बहुत चमत्कारिक फलदायी मानी गई है।
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता
श्री हनुमानजी नल,बुद्धि और ज्ञान देने वाले देवता माने जाते है।श्री हनुमान की भक्ति और दर्शन कर्तव्य,समर्पण,ईश्वरीय प्रेम,स्नेह,परोपकार, वफादारी और पुरुषार्थ के लिए प्रेरित करते है।उनके विराट और पावन चरित्र के कारण ही उन्हें शास्त्रों में सकलगुणनिधानं शव्द से पुकारा गया है।हनुमान चौपाई में आठ सिद्धि बताई गई है।अष्ट सिद्धि सीता माता के आशीर्वाद से ही संभव हो सकी।अणिमा लघिना महिमा गरिमा प्राप्ति प्राकाम्य वशित्व और ईन्शित्व आठ सिद्ध हनुमानजी के पास है।
नौ निधियाँ
गोस्वामीजी तुलसीदास जी ने अपनी रचना में हनुमान चालीसा में माता सीता की कृपा से आठ सिद्धि और नव निधि प्राप्त करने और उनके भक्तों को देने का बल प्राप्त होने के बारे में लिखा गया है।हनुमान की भक्ति सभी बुराइयों और दोषों को दूर कर गुण और बल देने वाली मानी गई है।जहाँ गुण और गुणी व्यक्ति होते है वहा संकट भी दूर हो जाते है।ये निधिया वास्तव में शक्ति का ही रूप है।महापद्म निधि पध्मनिधि नील निधि मुकुंद निधि नन्द निधि मकर निधि कच्छप निधि शंख निधि खर्व निधी आदि हनुमान उपासना से भक्तों को मिलती है।
कांतिलाल मांडोत
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