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अतीक अहमद और अशरफ अहमद दोनों माफिया सरगना अपनी-अपनी करनी के शिकार

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अतीक अहमद और अशरफ अहमद दोनों माफिया सरगना अपनी-अपनी करनी के शिकार

शक्तिशाली अपराधी राजनैतिकों के लिए स्वर्ग बना यूपी खूनी संघर्ष की रणभूमि में तब्दील होने लगा लगा था।असद अहमद और गुलाम के एनकाउंटर की चर्चा थमी ही नही कि अतीक और उसके भाई अशरफ की पुलिस और मीडियाकर्मियों के समक्ष ही हमलावरों द्वारा मार गिराए गए।।तीन दशक पूर्व लखनऊ,इलाहाबाद जैसे शहरों सहित दहशत फैलाकर धोष जमाने वाले दोनों भाई की हत्या से एक अध्याय समाप्त हो गया है।तलवार के दम पर जीने वाले तलवार के वार से ही दम तोड़ते है।माफिया सरगना समाजवादी पार्टी के नेता रह चुके अतीक अहमद के नाम से यूपी में अच्छे अच्छे का पारा गिर जाता था।उसके सामने बोलने की किसी मे हिमत नही थी।अतीक अहमद ने करोड़ो का सामाज्य खड़ा कर लिया था।पांच बेटे में मझला असद का एनकाउंटर में मौत हो गई थी।
अतीक अहमद के दो नाबालिग बेटे अलग अलग जेलों में बंद है।अति महत्वाकांक्षी व्यक्ति होने के बावजूद अतः
अतीक अहमद जलीलभरी जिंदगी जीना नही चाहता था।असरफ अपने भाई के नक्शेकदम पर चल कर जिंदगी से ही हाथ धो लिए।अतीक अहमद पर फिरौती,अपहरण,हत्या,जमीन हड़पने जैसे बड़े अपराधों में हाथ डालना शुरू किया और देखते देखते अतीक अहमद ने पाकिस्तान की आतंकी संगठन के साथ सीधे तार जोड़ लिए। अतीक ने रिमांड के दौरान कुबूल किया था कि पाकिस्तान ड्रोन के जरिये हथियार भेजता था। अतीक उस हथियारों का इस्तेमाल करता था।उसने कुबूल किया कि हमारे पास हथियारों की कोई कभी कमी महसूस नही हुई थी।उसके नाम से लखनऊ,इलाहाबाद, गोरखपुर, आगरा सहित अनेक शहरो सहित यूपी थर्राने लगा था।लखनऊ में बाबू बक्शी और सुभाष भंडारी अपराध जगत के बेताज बादशाह थे ।अजीतसिंह लखनऊ के बेताज बादशाह थे।अजीतसिंह लखनऊ में अपराध जगत के बादशाह बन गए और पुलिस रिकार्ड में हिस्ट्री शीटर के रूप में दर्ज हो गए।लखनऊ में माफिया सरगनाओ की भीड़ के लिए सिर्फ पुलिस जिम्मेदार नही थी क्योकि अतीक अहमद,अशरफ़, मुख्तार अंसारी,अमरमणि त्रिपाठी जैसे दुर्दांत अपराधी और शूटर राजनैतिक दलों से जुड़े हुए थे।यूपी अपराधियो की शरणस्थली बन चुका था ।उनमे आपराधिक पृष्ठभूमि और धाकधमकी से उभरे मुख्तार अंसारी,अतीक अहमद ,अक्षय प्रतापसिह, अखिलेशसिंह ,मंत्री रघुनाथ प्रतापसिंह उर्फ राजा भैया जैसे लोग राजनैतिक सरंक्षण से अपना सामाज्य चला रहे थे।इनके सरंक्षण में पलने वाले भी कई ऐसे अपराधियों की बड़ी लिस्ट है जो किसी को मारना उनके बाएं हाथ का खेल था।अतीक अहमद,अशरफ़ के मारे जाने के बाद यूपी में माफिया सरगनाओं का खेल खत्म हो गया है।अपनी घोष जमाने वाले देखते ही देखते हत्या करने में माहिर थे।यूपी की भाजपा सरकार ने इन गुंडों और मवालियों को अपना स्थान मुकर्रर कर जेल भेजने में सफलता हासिल की है।इनके सामने पुलिस अक्सर मजबूर थी।राजनेताओ के सरंक्षण में पलने वाले माफियागिरी इतनी फलफूल गई थी कि शराब और शबाब में राते रंगीन होती थी।ये जब चाहे तब सल्तनत को हिलाने में सफल होते थे।बड़े पैमाने और बाहुबल आ जाने से उन सरगनाओं में हैकडी आ गई थी।बिना नम्बर वाली काली बोलेरो गाड़ियों में घूमना न केवल माफियाओ का शौक बन गया ,बल्कि इनके जरिए वे अपनी निर्विवाद सत्ता का प्रदर्शन करते और सरकारी तंत्र के प्रति अवज्ञा जताते थे।धीरे धीरे गिरोह बढ़ते गए और अंधारिअलम के बेताज बादशाह अतीक के इर्दगिर्द घूमने लगते थे।
राजनैतिक आकाओं के दम पर करोड़ो का सामाज्य स्थापित करने वाले अकेले अजीतसिंह या अतीक ही नही थे।इसमें राजा भैया,अमरमणि त्रिपाठी,अक्षय प्रतापसिह, अखिलेश सिंह,धनन्जयसिंह अजित अभयसिंह और अजय शुक्ल जैसे लोगो का सत्ता में खासा दखल था।इसमें किसी राजनीतिक पार्टी के शक्तिशाली नेता थे।सदन में सम्मानित सदस्य होने पर भी कई लोगो के लखनऊ के भीतर बाहर आपराधिक गतिविधिया जारी रखी थी।अजीतसिंह और अभी जेल में बंद मुख्तार अंसारी एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे।आवास परियोजनाए और तेजी से फैल रहे बहुमंजिला इमारतों का व्यवसाय माफिया सरगना के सांसद विधायक बने लोगो के लिए अपना अपना हिस्सा पाने माफिया सरगनाओं के गिरोह में लड़ते देखे गए थे।माफिया सरगना परेशानी में होते थे तो राजनीतिक दल अपनी छत्रछाया में पनाह दे देते थे।जिससे उनके हौसले बुलंद हो जाते थे।यूपी को यू ही जंगलराज का तमगा नही मिला हुआ है।जिस दल की भी सरकार आई थी थोड़ी बहुत इन माफियाओ के साथ थोड़ा बहुत नरम रवैया रखा है।बाहर से राजनीतिक दल के नेता घोष जमाते थे लेकिन अंदर से इन बदमाशो को शरण मिलती थी।सुबह छूटने के बाद शाम को डॉन की भूमिका में आ जाते थे।सरकार सपा की हो,बसपा की हो या फिर कभी किसी अन्य दल का गढ़ रहा यूपी हर समय तंग ही रहता था।दहशतगर्दी बरकरार थी।सरकार बदलने के बाद यूपी की बागडोर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथों में आ गई।योगी ने गुंडा मवालियों और माफिया सरगनाओं को अपना स्थान बता दिया है।यूपी में अमन चैन के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी जवाबदेही निभा रहे है। लेकिन यह कहावत आज चरितार्थ होती दिख रही है कि बोए पेड बबूल के आम कहा ते खाए।अतीक अहमद उसके बेटे असद अहमद,गुलाम और असरफ की मौत से उनके परिवार को भगवान सदमा सहन करने की हिमत प्रदान करे।बुरे काम का हमेशा बुरा ही नतीजा होता है।

कांतिलाल मांडोत

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