नमस्कार 🙏 हमारे न्यूज पोर्टल - मे आपका स्वागत हैं ,यहाँ आपको हमेशा ताजा खबरों से रूबरू कराया जाएगा , खबर ओर विज्ञापन के लिए संपर्क करे 9974940324 8955950335 ,हमारे यूट्यूब चैनल को सबस्क्राइब करें, साथ मे हमारे फेसबुक को लाइक जरूर करें , भगवान शंकर शीघ्र पसंद होने वाले देव है,इनकी पूजा अवश्य फलदायी होती है* – भारत दर्पण लाइव

भगवान शंकर शीघ्र पसंद होने वाले देव है,इनकी पूजा अवश्य फलदायी होती है*

😊 कृपया इस न्यूज को शेयर करें😊

शिव को प्रिय है रात्रिपूजा
*भगवान शंकर शीघ्र पसंद होने वाले देव है,इनकी पूजा अवश्य फलदायी होती है*
हमारे यहां सभी देवी देवताओं का भजन-पूजन दिन में ही होता है।परंतु भगवान शंकर की पूजा रात में ही क्यो की जाती है।यह जानने की उत्सुकता उनके बहुत से भक्तों में होती है ।शिव को रात्रि क्यो प्रिय है? इस बारे में सर्वविदित है कि वे तमोगुण एवं संहार शक्ति के अधिष्ठाता है। इस कारण तमोमयी रात्रि से शंकर का प्रेम होना स्वाभाविक ही है।रात्रि संहार का प्रतीक प्रतीक है।रात्रि का आगमन होते ही प्रकाश का सहारा होता है।जीवों को तमाम कियाएं समाप्त होने लगती हैं निद्रा द्वारा चेतना का संहार होता है. सृष्टि की सपूर्ण चेतना मिटने लगती है। ऐसी दशा में प्राकृतिक दृष्टि से शिव का रात्रि प्रिय होना स्वाभाविक और सहज है इसी कारण शिव की आराधना सदैव न केवल रात्रि में वरन प्रदोष यानि प्रारंभ होने पर ही की जाती है। इस तरह शिवरात्रि का कृष्णपक्ष में ही होने का अभिप्राय स्पष्ट है शुक्लपक्ष में चंद्रमा पूर्णता की और होता है और कृष्णपक्ष में क्षीणता की और चंद्रमा जब चढ़ता है तब संसार के समस्त तेजवान पदार्थ बढ़ते है व चंद्रमा के क्षय होने पर उनमें क्षीणता आती है इसका प्रभाव समस्त भूमडल पर होता है। अमावस पर तामसी प्रवृतिया, भूत-प्रेत आदि शक्तियां प्रबल व प्रबुद्ध होती है जो शिव के ही नियामक है ।इस कारण शिवरात्रि का आगमन कृष्णपक्ष में ही होता है ।शिवपूजा का एक विशेष विधान है। उस आराधक को हर संभव सिले हुए वस्त्र पूजन के समय नहीं पहनने चाहिए। पूजा के समय पुजारी या आराधक को पूर्व या उत्तर की ओर मुख करना चाहिए। इतना ही नहीं भस्म, चिपुड और रुद्राक्ष शिवपूजन की विशेष सामग्री हैं जो पूजा करनेवाले के शरीर पर होना चाहिए। भगवान शकर की पूजा में चंगा या अन्य पुष्प को नहीं चढ़ाया जाता है।तिल का प्रयोग भी वर्जित है। इतना ही नहीं शिवपूजन करते हुए करताल नहीं बजाना चाहिए। भगवान शंकर शीघ्र प्रसन्न होनेवाले देव हैं। उनकी पूजा किसी भी प्रकार से की जाए, अवश्य फलदायी होती है।वे अपने भक्तों को हर हाल में निहाल करते हैं। इसी कारण वे सभी देवों में महादेव है। वे महादेव कैसे कहलाए इस बारे में शिवपुराण में एक कथा वर्णित है- एक बार ब्रह्मा और विष्णु में यह विवाद छिड़ गया कि दोनों में से बड़ा कौन है? जिस समय दोनों में यह विवाद हो रहा था, उसी समय विशाल स्तंभ को देखकर दोनों देवताओं ने आपस में निर्णय किया कि स्तंभ के एक-एक सिरे को छूकर आए और जो भी पहले छूकर वापस निर्दिष्ट स्थान पर आ जाएगा।वही बड़ा माना जाएगा।दोनों ही काफी समय तक उस स्तंभ के सिरों को ढूंढते रहे परंतु कोई भी छोर पाने में सफल न हो सके। थक हारकर दोनों उसी स्थान पर लौट आए।
वे सतंभ को लेकर विस्मित थे।उनकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था।मन में तरह-तरह के सवाल उठ रहे थे कि तभी वहां भगवान शंकर प्रकट हुए उन्होंने बताया कि स्तंभ वे स्वयं हैं यह उन्हीं का ज्योर्तिलिंग है। तब विष्णु और ब्रह्मा को अपनी भूल का आभास हुआ।उन्होंने स्वीकार किया कि उन दोनों में बड़ा होने का अधिकारी कोई नहीं बल्कि बड़े तो स्वयं महादेव ही है।बस उसी समय से शिव महादेव कहलाने लगे।

                       कांतिलाल मांडोत                       

Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें 

Advertising Space


स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे.

Donate Now

लाइव कैलेंडर

May 2025
M T W T F S S
 1234
567891011
12131415161718
19202122232425
262728293031