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आचरणहीनता व्यक्ति को पतन की ओर ले जाती है-जिनेन्द्रमुनि मसा*

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*आचरणहीनता व्यक्ति को पतन की ओर ले जाती है-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 25 अक्टूबर
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ महावीर जैन गोशाला उमरणा में जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि वर्तमान दौर में मनुष्य भी आज अपने मूल स्वरूप को खोता जा रहा है।कुछ तो बदलते समय का प्रभाव और कुछ संगति का कारण है कि मनुष्य अपने कर्तव्य को भूलकर मानवीय गुणों को खोता जा रहा है ।हम सभी अच्छाई पसंद करते है।अच्छे भी रहते है।किंतु अच्छाई की निरंतरता नही रख पाते है,उसी का दुष्परिणाम है कि हमारी उच्च संस्कृति ,उच्च संस्कार तथा उच्च परम्परा को हम खोते जा रहे है।निरन्तरता में ही चरित्र निर्माण हुआ करता है।एक अच्छाई को जीवन भर टिकाए रखना भी साधना है मनुष्य के आचरण ने उसे नीचे गिरा दिया है।कथनी और करनी मे भेद समझने वाला इंसान के रूप में हैवान है।मुनि ने कहा पुस्तकीय ज्ञान दिया जा रहा है,वह भी आचरण से मेल नही खा रहा है।अच्छे कार्यो में अनेक विघ्न आते है,लेकिन मनस्वी व्यक्ति विघ्नों की परवाह किये बिना निरन्तर आगे बढ़ता रहता है।हम सभी का कर्तव्य है।आचरण को उन्नत बनाये, आचरण की शुद्धि करे,हमारे पास धन है,उसका उपयोग न कर पाये, तो उसका महत्व ही क्या है?ज्ञान प्राप्त करके उसे यदि आचरण में प्रकट नही कर पाये तो क्या उपयोग होगा उसका?संत हो या महंत आचार्य हो या साधरण साधु सभी के अपने आचार है,नियम है,मर्यादाएं है।अपने निर्धारित कर्म एवं कर्तव्य से विमुख होना मूर्खता है।स्वार्थ के वशीभूत होकर दुराचरण की ओर आगे बढ़ने से पुण्य नही,बल्कि पाप कर्म की वृद्धि होती है।शुभ कर्म के उदय से मनुष्य का जीवन प्राप्त होता है।यदि धर्माचरण नही किया तो गाय को दुह कर उसका दूध कुतो को पिलाने जैसी स्थिति बन जाएगी।क्या आप भी मनुष्य जन्म को निरर्थक कर दोगे?मुनि ने कहा धन को कमाने में समय लगता है।खोने में नही।इतिहास को बनाने में हजारों वर्ष लग जाते है।इतिहास बनाने के लिए वीरो को खून बहाना पड़ता है।लिखने में समय लगता है,लिखे हुए इतिहास फाड़कर फेंकने में या जला देने में कितनी देर लगती है?प्रवीण मुनि ने कहा कल्पना और अज्ञान के कारण आत्मा अपने को भुला बैठी है।भारत के सभी महापुरुष चाहे वे किसी भी सम्प्रदाय के हो,भिन्न भिन्न पंथ के हो,लेकिन उनका धेय्य और लक्ष्य एक ही होना चाहिए।रितेश मुनि ने कहा अहिंसा हमारी आत्म संपति है,यह हमारा धन है।यही आत्म सत्य है।अहिंसा नही तो मानव मानव नही है।प्रभातमुनि ने कहा आज कितने लोग है जो जीवन मे धर्मध्यान को अपनाकर जीवन जी रहे है।धर्मध्यान करने वाला मानव लौकिक जीवन के साथ साथ पारलौकिक जीवन का भी निर्माण करता है।

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