नमस्कार 🙏 हमारे न्यूज पोर्टल - मे आपका स्वागत हैं ,यहाँ आपको हमेशा ताजा खबरों से रूबरू कराया जाएगा , खबर ओर विज्ञापन के लिए संपर्क करे 9974940324 8955950335 ,हमारे यूट्यूब चैनल को सबस्क्राइब करें, साथ मे हमारे फेसबुक को लाइक जरूर करें , राष्ट्र एवं समाज हित में धर्मगुरु की आदर्श भूमिका – भारत दर्पण लाइव

राष्ट्र एवं समाज हित में धर्मगुरु की आदर्श भूमिका

😊 कृपया इस न्यूज को शेयर करें😊

राष्ट्र एवं समाज हित में धर्मगुरु की आदर्श भूमिका

आचार्य महाश्रमण द्वारा अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव पर आशीर्वचन के लिए लालायित तेरापंथ जैन समाज

गुजरात की पुण्य भूमि सूरत में तेरापंथ जैन समाज के आचार्य महाश्रमण के सानिध्य में अक्षय तृतीया का ऐतिहासिक पर्व मनाने देश के कोने कोने से तेरापंथ जैन समाज के श्रावक श्राविकाएं उपस्थित रहेगी।अक्षय तृतीया के इस पर्व पर 11 सौ से ज्यादा वर्षीतप पारणा आचार्य महाश्रमण एवं साधु-साध्वियों के सानिध्य में पूर्ण होगा। इस संवच्छर तप पर भारत के धर्मानुरागियों का आवागमन हो रहा है।पारणा एक क्रिया की पूर्ति है।तप की संपूर्ति और दान की परिणति दोनों का संबंध पारणा से है।संत श्रमण अपने जीवन के कटु तिक्त अनुभवों, चारित्र की कठोर चर्या,तपस्या, स्वाध्याय आदि की गहरी पैठ से जो पाते है उसके माध्यम से धर्म जिज्ञासु और श्रोताओं को अपने प्रवचनों की पुष्टि का जीवन देते है।वे भाग्यशाली होंगे,जो सूरत की धरा पर आचार्य महाश्रमण के पदार्पण के लिए पलक पावड़े बिछाने वाला तेरापंथ जैन समाज अपनी श्रावक संज्ञा को सार्थक करने में लालायित है।भगवान आचार्य के दर्शन के अभिलाषी सूरत आगमन के पूर्व जगह जगह विहार क्षेत्रो में दर्शन कर धन्य हो रहे है।अक्षय तृतीया पर वर्षीतप का पारणा आध्यात्मिक भावना या संस्कार जगाने वाला पर्व है क्योंकि यह सांस्कृतिक त्यौहार भी है ।हजारो श्रावक श्राविकाओं की उपस्थिति में इस भव्य आयोजन में आचार्य महाश्रमण के सानिध्य में पारणा महोत्सव मनाया जाएगा।जिसका बेसब्री से इंतजार है।

संत न हो संसार मे ,जल जाये संसार

संतो ने ही धर्म की महिमा को दूर दूर तक पहुंचाया है।यदि संत न होते तो सांसारिक तापों की ज्वाला में संसार ही जल जाता।संतो ने अध्यात्म के अमृत से संसार को जीवन दिया है।जिस प्रकार सिंधु का जल बिंदु से संबंध है,वैसा ही समाज एवम साधु का संबंध है।जहां साधु है,वहाँ समाज सदैव आदर्श का अनुसरण करता है।साधु समाज की संस्कृति को उन्नत बनाता है।साधु कल्पवृक्ष है।ऐसा वृक्ष जिसके नीचे जो कल्पना करो,कामना करो वह तत्काल पूरी हो जाती है।ऐसे आचार्य भगवन महाश्रमण के दर्शन लाभ लेकर श्रावक श्राविकाएं अपने आप को धन्य महसूस करेंगे।साधु समाज और राष्ट्र की भावना को समझकर ही देता रहता है।संत समाज की उपस्थिति से देश शांतिप्रिय व सुखी बनता है।अज्ञानरूपी अंधकार के कारण हमें मार्ग सूझ रहा है।इस समय आचार्य महाश्रमण अपने हाथ मे ज्ञान और धर्म की चमचमाती सर्चलाइट लेकर गुजरात के सूरत में आ रहे है।इससे साधक को अलौकिक और अवाच्य आनन्द प्राप्त होगा।

 

गुरु सच्चा पथदर्शक

जो प्रकाश की और ले जाये वही गुरु है।गुरु सच्चा पथ प्रदर्शक है।भूले भटके गुमराही इंसानों को मार्ग प्रदर्शित करता है हताश और निराश व्यक्तियों को प्रेरणा देता है ।कुमार्ग से हटाकर सुमार्ग पर लाता है।वह मोह माया व कुहरे से हटाकर सम्यक्त्व के जगमगाते प्रकाश में लाकर खड़ा कर देता है।जो अज्ञान रूपी अंधकार का नाश करता है।वह गुरु है।इस धरा को पावन करने आचार्य के आगमन से शहर सहित गुजरात मे खुशी की लहर पसर चुकी है।क्योंकि गुरु ज्ञान की चिंगारी देते है और इस ज्ञान रूपी चिंगारी के लिए आचार्य भगवन का सूरत में बेसब्री से इंतजार है।अक्षय तृतीया के इस पावन प्रसंग पर महावीर के जयकारों से पांडाल गुंजायमान होगा।साधुओं से ही युग का भला होता आया है।
कम आयु में जिन्होंने साधु धर्म को स्वीकारा वे ही धर्म के इतिहास में अपना नाम लिखा पाये है।साधु धर्म के बहुत बड़े स्तम्भ सिद्ध होते है।आज के युवाओ को उन महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेकर अपना लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए।सन्यास की ललक बचपन मे ही जागृत हो जाती है। जब युवाओ को शक्ति का संचार होगा,तभी इस समाज में क्रांति का सूत्रपात होगा।

 

साधु का प्रत्येक समाज मे महत्वपूर्ण स्थान है।आज अधिकतर माता पिता अपने बच्चो को डॉक्टर,इंजीनियर, वकील आदि बनाना चाहते है।उच्च प्रशासनिक अधिकारी बनाने हेतु लाखो रुपये खर्च कर देते है।क्या प्रशासनिक अधिकारी का जीवन साधु से भी महान है?इस पर समाज को विचार करना है।समाज मे शांति रहे,इस हेतु धर्म ज्ञान के प्रचारक की आवश्यकता प्रत्येक युग मे रही है।इसकी पूर्ति समाज ही करता है।

आहार ग्रहण करते समय साधु का हाथ नीचे रहता है,दाता का ऊपर।आहार ग्रहण के पश्चात दाता का हाथ नीचे चरण स्पर्श को जाता है।वही साधु का हाथ आशीर्वाद स्वरूप ऊपर उठता है।जब एक का हाथ नीचे जाता है तो दूसरे का सदैव ऊपर जाएगा।जब तक यह क्रमिक संबंध कायम है।तभी तक समाज मे मर्यादा है।समाज को चाहिए कि धर्म की व्यवस्था को बनाए रखने हेतु नई पीढ़ी में अध्यात्म के संस्कार उतपन्न करना होगा।आदर्श समाज के निर्माण के लिए जो भूमिका साधु की हो सकती है।वह अन्य की कभी नही हो सकती।साधु संतों का जीवन तो आस्था के हिमालय सदश होता है।जिससे करुणा,प्रेम,सत्य,अहिसा का निर्झर हर पल फूटता रहता है।समाज की सुद्रढ़ नींव तैयार करने में सच्चे क्रियानिष्ठ साधु संतों की अहम भूमिका निभाते है।संतों के बताए हुए मार्गदर्शन का अनुसरण हरेक श्रावक श्राविकाएं को करना चाहिए।
वचन से ही अधिक अद्भुत होता है प्रवचन।शब्द से ही मन और विचार की शक्ति लाख गुना अधिक प्रचंड है।जहाँ शब्द के साथ विचार शक्ति मिल जाती है तो वह शब्द रामबाण की भांति अचूक शक्ति का काम करता है।वचन वह शक्ति है जिसमे शब्द एवं विचार शक्ति का मिलन है।प्रवचन केवल शब्दो का धाराप्रवाह कुशल संयोजन मात्र नही है।किंतु वह सत्य का दर्शन है,जीवन की जटिलताओं का सरलीकरण है।आचार्यश्री के प्रवचन सुनने के लिए श्रावक श्राविकाएं अधीर होते है।इसके लिए संतो भगवन्तों की अगुवाई करने पहुँच जाते है।वहा प्रवचन का लाभ ग्रहण कर रहे है।क्योंकि प्रवचन में आत्म परिष्कार और संस्कार की प्रेरणाएं है।

कांतिलाल मांडोत

Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें 

Advertising Space


स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे.

Donate Now

लाइव कैलेंडर

July 2025
M T W T F S S
 123456
78910111213
14151617181920
21222324252627
28293031